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भग्नावशेष

अभिकथन
अभिकथन
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ये जो मेरे ह्रदय के भग्नावशेष ,
तुम्हारी आँखो में प्रतिबिंबित हो रहे है ,
न जाने कितने पलो का इतिहास ,
स्वयं में समेटे हुए है ,
वे पल जिन्हें कोई जी न पाया ,
जिनका उपयोग कोई न कर पाया ,
सपनो के गठ्ठर स्वयं में समेटे हुए है ,
ये जो मेरे ह्रदय के भग्नावशेष ………..

न जाने कितने शिल्पियों की कल्पनाएं ,
इन पत्थरों के नीचे दबी पड़ी है ,
वे कल्पनाएं जो मेरी सुप्त इच्छाओं से युद्धरत है,
की क्यों नकार दिया तुमने ,
अपने निर्माणकर्ता का कौशल ,
ऐसे विह्वल समायोजन से ,
स्वयं को लपेटे हुए हैं ,
यह जो मेरे ह्रदय के …………

मुझमें और तुझमें -अंतर मात्र इतना है ,
कि मेरे दिनों का रोजनामचा ,
तुम्हारे सामने खुला पड़ा है ,
पर तुमने अभी उसे खोला नहीं है ,
या वह अभी अन्धकार में दबा पड़ा है ,
पर इतना तो निश्चित है ,
कि एक दिन तुम भी मेरे जैसे अवश्य होवोगे .
एक दिन तुम भी समय के गर्त में अवश्य खोवोगे ,
तब मै करूँगा उपहास तुम्हारा ,
तब मै माँगूंगा उन अजन्मे क्षणों का प्रतिकार ,
जो तुमने मुझसे छीने हैं ,
ये जो मेरे ह्रदय के …………

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