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(गतांक से आगे)
गुजरात के नाटक का पटाक्षेप यहीं नहीं हुआ | जनदबाव के आगे झुकते हुए सरकार ने विधानसभा भंग तो कर दी पर अब उसकी योजना राष्ट्रपति शाशन के जरिये पहले जैसी स्थितियां बनाए रखने की थी | राष्ट्रपति शाशन की अवधि अस्वाभाविक रूप से लम्बी खिचनें पर मोरार जी देसाई ने १ अप्रैल १९७५ को प्रधानमन्त्री को पत्र लिख कर दो सवाल उठाये | उन्होंने लिखा कि यदि केंद्र सरकार मानसून के पहले चुनाव नहीं कराती और आपातकाल की घोषणा नहीं उठाती ( जो बांग्लादेश युद्ध के बाद अभी तक समाप्त नहीं की गयी थी ) तो वह ७ अप्रैल से अनशन करेंगे | प्रधानमन्त्री कोई घोषणा नहीं करनी चाह रही थी पर अंततः उन्हें झुकना पडा | समय १२ जून १९७५ की तिथि की प्रतीक्षा कर रहा था जिस दिन गुजरात विधानसभा के चुनाव परिणाम आने थे और भारत में कुछ एतिहासिक बदलाव होने थे |
इस बीच एक और महत्वपूर्ण घटना हुई – संसोपा नेता जार्ज फर्नांडीज के आह्वान पर हुई देशव्यापी रेल हड़ताल जिससे इंदिरा गांधी और उनकी सरकार बुरी तरह थर्रा गयी | इधर गुजरात के घटनाक्रम और उत्तर भारत में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने जनता में परिवर्तन की नयी ललक पैदा कर दी | गुजरात से प्रेरणा ले कर बिहार में भी छात्र आन्दोलन प्रारम्भ हो गया | छात्रों ने अपनी शुरुवात १८ मार्च १९७४ के विधानसभा घेराव से की और अतिसक्रिय पुलिस के साथ छात्रों की लगातार मुठभेडे शुरू हो गयी परिणामस्वरुप एक सप्ताह के अन्दर २७ छात्र मारे गए | जल्द ही सम्पूर्ण विपक्ष भी छात्रों के इस आन्दोलन में शामिल हो गया | इस बार जयप्रकाश नारायण ने छात्रों के आन्दोलन का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया | गुजरात की तरह बिहार में भी छात्रों की प्रारम्भिक मांगे इतनी कठिन नहीं थीं और कोई भी सरकार यदि सदिच्छा दिखाती तो आसानी से इसे मान सकती थी पर बिहार की तत्कालीन अब्दुल गफूर सरकार ने यह मौक़ा गवाँ दिया | आन्दोलन के स्वरूप में अगला परिवर्तन ५ जून को तब आया जब जे.पी. के आह्वान पर पटना में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया | इस जनसभा में लगभग पांच लाख लोगो की स्वतः स्फूर्त भीड़ जुटी |जे.पी. के निकट सहयोगी और प्रख्यात चिन्तक आचार्य राममूर्ति के अनुसार- ” पांच जून के विशाल प्रदर्शन को देख कर ऐसा लगा जैसे पूरा बिहार खडा हो गया है और जनता किसी अज्ञात नियति की ओर बढ़ने को आतुर है ………………सारे संघर्ष ने सत्ता बनाम जनता का रूप ले लिया था |” यही वह दृश्य था जिसने राष्ट्रकवि दिनकर को सिंहासन खाली करो कि जनता आती है !जैसी कविता लिखने को प्रेरित किया | इसी जनसभा में पहली बार लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया गया | अपने भाषण में जे.पी. ने कहा कि भ्रष्टाचार के अंत , बेरोजगारी दूर करने और शिक्षा में सुधार जैसी मांगे इस व्यवस्था द्वारा पूरी नही की जा सकती क्योकि ये समस्याए इसी व्यवस्था की उपज है | हमारी मांग सत्ता परिवर्तन की नहीं व्यवस्था परिवर्तन की है | व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन हो , समाज की रचना में परिवर्तन हो और राज्य की व्यवस्था में परिवर्तन हो तब कहीं जा कर सच्चा परिवर्तन हो सकेगा और मनुष्य सुख व शान्ति का मुक्त जीवन जी सकेगा | जे.पी. ने ७ जून से विधानसभा भंग करो अभियान चलाने , मंत्रियो और विधायको को विधानभवन में प्रवेश से रोकने के लिए धरना देने , प्रखंड से सचिवालय स्तर तक प्रशाशन ठप करने , लोक शक्ति बढाने हेतु छात्र-युवक व जनसंगठन बनाने , नैतिक मूल्यों की सदाचरण द्वारा स्थापना करने तथा गरीब और कमजोर वर्ग की समस्याओं को दूर करने का आह्वान छात्रों और जनसाधारण से किया |
कुछ लोगों को जे.पी. का इस प्रकार का आह्वान अतिवादी लग सकता है पर उसी शाम घटी एक घटना ने इस आह्वान का औचित्य सिद्ध कर दिया और यह भी बता दिया कि शाशन की प्रकृति किस हद तक स्वेच्छाचारी हो चुकी थी | जब जयप्रकाश अपना भाषण समाप्त करने ही वाले थे कि सभा में गोलियों से घायल लगभग बारह लोग पहुँचे और जनता में तीव्र उत्तेजना फैल गयी | इन लोगों पर सभा की ओर जाते समय पटना के बेली रोड स्थित एक मकान से गोली चलायी गयी थी | पटना के डी.एम. विजय शंकर दुबे ने बतया कि उस मकान में ‘ इंदिरा ब्रिगेड ‘ नामक संगठन के कार्यकर्ता रहते थे , उनमे से छह व्यक्ति गिरफ्तार कर लिए गए है जिनमें से एक के पास धुवां निकलती पिस्तौल और गोलियां बरामद की गयी | सभा में जिलाधीश द्वारा लिखा पत्र भी पढ़ कर सुनाया गया जिसमे गोलीकाण्ड के बावजूद प्रदर्शनकारियों द्वारा शान्ति और संयम बरतने की सराहना की गयी थी | इंदिरा ब्रिगेड बिहार के कांग्रेसी नेता फुलेना राय के नेत्रित्व में चलने वाला संगठन था | बाद में अपना चेहरा बचाने के लिए सरकार ने फुलेना राय को गिरफ्तार भी किया पर जेल से उसके द्वारा लिखे गए एक पत्र से ( जो जे.पी. के हाथ आ गया था ) स्पष्ट हो गया कि यह कार्य सरकारी निर्देश पर उसके द्वारा किया गया था और इस कार्य में मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर भी शामिल थे | यह जे. पी. के व्यक्तित्व का ही चमत्कार था की उपस्थित जनसमुदाय ने जे. पी की शान्ति बनाए रखने और अहिंसा का पालन की अपील का सम्मान किया | सभा के विसर्जन के उपरान्त जे. पी. ने हजारों पत्रों के बंडलो को ट्रक पर लदवाया और राज्यपाल भवन ले गए , इन पत्रों में लाखों लोगो के हस्ताक्षरों से युक्त घोषणा थी कि वे प्रचलित सत्ता में विश्वास नहीं करते और अप्रत्यक्ष रूप से यह घोषणा भी कि उन्हें जे.पी. की नीतियों और कार्यो में विश्वास है | बिहार आन्दोलन अब एक नए चरण में पहुच गया | ७ जून से ” विधान सभा भंग करो ” का नारा ” विधान सभा भंग करेंगें ” में परिवर्तित हो गया और बिहार छात्र संघर्ष समिति ने घोषणा की कि यदि विधायकों ने स्वेछापूर्वक इस्तीफे नहीं दिए तो १२ जून से उनका अहिंसात्मक घेराव किया जाएगा |
इस आह्वान पर राजनीतिक दलों ने अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रया दी | २४ सदस्यीय जनसंघ गुट के १२ विधायको ने लालमुनि चौबे की अगुवाई में त्यागपत्र दे दिए पर ८ सदस्यों ने पार्टी निर्देशों को ठुकरा दिया | जनसंघ ने इन ८ विधायको व तीन अन्य को दल से छः वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया जब कि एक विधायक ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया | तेरह सदस्यीय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सात सदस्यों ने इस्तीफे दिए पर अन्य ने नहीं | कांग्रेस के तेईस विधायको में किसी ने इस्तीफा नहीं दिया जिसमें संगठन कांग्रेस भी शामिल थी | बिहार सरकार के मंत्री दरोगा प्रसाद राय ने घोषणा की विधायको के निवास को सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है और यहाँ किसी भी बाहरी व्यक्ति के आने-जाने पर रोक रहेगी और हर आगंतुक की कड़ी जांच की जायेगी |
इस बीच लोकनायक जयप्रकाश ने देश के अन्य भागो में अपने विचारों के प्रचार हेतु दौरा प्रारम्भ कर दिया , कांग्रेसी राज्यों के अतरिक्त पश्चिम बंगाल जैसे साम्यवादी सरकार वाले राज्यों में भी उन्हें अपार जनसमर्थन प्राप्त हुआ | तब जे.पी. ने ४ नवम्बर १९७४ को पटना में एक सभा के आयोजन की घोषणा की , इस बार सरकार ने इस सभा को विफल करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया | नियत तारीख के एक पहले पूरे शहर में धारा १४४ लागू कर के पांच से जादा व्यक्तियों के एकत्रित होने पर रोक लगा दी गयी | रेल और बसों की जांच कई दिन पहले से शुरू हो गई थी जिससे किसी भी प्रकार की जन संकुलता को रोका जा सके | इतने इंतजामो के बावजूद इस सभा में लगभग पच्चीस हजार लोग एकत्रित हो गए और जलूस में शामिल हुए | पुलिस ने कई बार आंसू गैस का प्रयोग और लाठी चार्ज किया | यहाँ तक की भारत छोड़ो आन्दोलन के नायक और प. नेहरु के सहयोगी रहे जे.पी. को भी नहीं छोड़ा गया और इसी दिन उन पर पटना में एतिहासिक पर बर्बर लाठी चार्ज किया गया |
( क्रमशः )
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