Menu
blogid : 10328 postid : 101

आपातकाल – 4 : इंदिरा इज इंडिया एंड़ इंडिया इज इंडिया

अभिकथन
अभिकथन
  • 20 Posts
  • 6 Comments

लेखमाला की इस कड़ी का अधिकाँश भाग डा . राही मासूम रजा द्वारा लिखित उपन्यास कटरा बी आर्जू से लिया गया है |

    एलहाबाद हाई कोर्ट का कमरा नंबर २४ खचाखच भरा हुआ था | कही तिल रखने की जगह नहीं थी | साँसे साँसों से उलझी पड़ रही थीं | यह भीड़ राजनीतिक थी | आदर्श वाली राजनीति नहीं | पेशे वाली राजनीति | राजनीति में इन लोगों के सपने नहीं पैसे लगे हुए थे | लाखों लाख रूपए | हजारों लाइसेंस | लाखों ठेके सड़क बनाने के ताकि बेरोजगारी चल सके | गाँव से शहर की तरफ | छोटे शहर से बड़े शहर की तरफ ……….
    जस्टिस सिन्हा ने मजमे की तरफ देखा , फिर वह पिछले दरवाजे से कमरा नंबर २४ में दाखिल हुए | तमाम लोग खड़े हो गए | उनके साथ तमाम रिश्वतें , तमाम लाइसेंस , तमाम साजिशे , बईमानी की सारी दौलत – हर चीज उठ खड़ी हुई और किसी ने उस सपने की तरफ ध्यान नही दिया जो सबसे अलग-थलग कमरा नंबर २५ में एक तरफ खडा जस्टिस सिन्हा की तरफ देख रहा था |

जस्टिस सिन्हा के बैठते ही तमाम लोग , तमाम लाइसेंस , तमाम ठेके बैठ गए | बस वह सपना खडा रह गया और किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया |
“राजनारायण-बनाम इन्द्रा गाँधी” -पेशकार ने एलान किया और जस्टिस सिन्हा ने फैसले की फ़ाइल खोली और सामने मजमे की तरफ देखा , गला साफ किया और कहा :
“मै सिर्फ फैसला सुनाउंगा और फैसला यह है कि राजनारायण का पिटीशन मान लिया गया ”
नंबर एक सफदरजंग में यह सुन कर सन्नाटा छा गया |
लोग आने लगे |
सुभद्रा जोशी ने कहा : त्यागपत्र दे देना चाहिये |
जगजीवन राम ने कहा : त्यागपत्र दे देना चाहिये |
स्वर्ण सिंह ने कहा : त्यागपत्र दे देना चाहिये |
यशवंतराव चौहान ने कहा : त्यागपत्र दे देना चाहिये |
श्रीमती गाँधी ने यह सुना और वह मुस्कुराती रही |
फिर दूसरा रेला आया |
यशपाल कपूर ने कहा : त्यागपत्र नहीं देना चाहिये |
सिद्धार्थ शंकर रे ने कहा : त्यागपत्र नहीं देना चाहिये |
रजनी पटेल ने कहा: त्यागपत्र नहीं देना चाहिये |
ओम मेहता ने कहा : त्यागपत्र नहीं देना चाहिये |
पी . एन . हक्सर ने कहा : त्यागपत्र नहीं देना चाहिये |
श्रीमती गांधी ने सुना और यह सुनकर वह मुस्कुराती रही |
और तब संजय गांधी ने माँ की आँखों में आँख ड़ाल कर कहा :- त्यागपत्र नहीं देना चाहिये |
श्रीमती गांधी खुद भी यही सोच रही थी | उन्होंने यह फैसला किया कि त्यागपत्र नहीं देना चाहिये | उनका फैसला सुनते ही अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की समझ में यह बात आ गयी कि श्रीमती गांधी को त्यागपत्र नहीं देना चाहिये |जस्टिस सिन्हा क्या बेचते है | वह होते कौन है प्रियदर्शनी को राजगद्दी से हटाने वाले और एक मोटे थलथले दिमाग में एक नारे का केचवा कुलबुलाने लगा कि इन्द्रा हिन्दुस्तान है और हिन्दुस्तान इन्द्रा है |

    इंदिरा तेरे सुबह की जय….इंदिरा तेरे शाम की जय ……
    तेरे काम की जय ….. तेरे नाम की जय…….!
    (२० जून १९७५ ,वोट क्लब दिल्ली में देवकान्त बरुआ द्वारा पढ़ी गयी तुकबंदी )
    १२ जून का दिन इंदिरा जी के लिए वाकई खराब दिन था | सुबह-सुबह उन्हें पता चला की उनके पुराने विश्वस्त सहयोगी डी.पी. धर अब नहीं रहे ( इंदिरा जी की ७५ के पहले की अभूतपूर्व सफलताओं में धर की सलाहों का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है | ) , गुजरात विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी की बुरी तरह हार हुई और सबसे बढ़ कर उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट के उसी कमरे में अपनी हार का फैसला सुनना पडा जिसमे कभी उनके पिता और पितामह जोरदार अदालती जिरह किया करते थे | न्यायमूर्ति सिन्हा ने अपने फैसले में श्रीमती गांधी को भ्रष्ट चुनावी आचरण का दोषी पाया और उनके चुनाव को अमान्य करार दिया | इस निर्णय का अर्थ यह भी था की अगले ६ वर्षो के लिए श्रीमती गांधी ना तो चुनाव में खड़ी हो सकती थी और ना ही किसी पद पर आसीन हो सकती थी | इसलिए फिलहाल उनका प्रधानमंत्री बने रहना सभव नही रह गया था |यधपि निर्णय के क्रियान्वयन पर बीस दिनों की रोक भी थी ताकि श्रीमती गांधी सर्वोच्च न्यायलय में अपील कर सके |

    जस्टिस सिन्हा द्वारा दिए गए इस निर्णय की व्यापक समीक्षा और आलोचना हुई है | समकालीन इतिहासकार विपिन चन्द्र लिखते हैं – ” न्यायमूर्ति सिन्हा ने उनके खिलाफ लगे ज्यादा गंभीर आरोपों को खारिज कर दिया जब कि चुनाव कानूनों के विरुद्ध अतिसाधारण यहाँ तक की ओछे मुद्दों के आधार पर उन्हें दोषी साबित किया | ” ( आजादी के बाद भारत पेज ३३३ ) कुछ इसी तरह की राय प्रसिद्द इतिहासकार राम चन्द्र गुहा की भी है | गुहा साहेब तो जे.पी. और न्यायमूर्ति सिन्हा दोनों के एक ही जाति कायस्थ होने की ओर भी इशारा करते है और यह भी कहते है की यदि श्रीमती गांधी सुप्रीम कोर्ट के आश्रय में बनीं रहती तो यह मामला वहाँ न टिक पाता |( भारत : नेहरु के बाद , पेज १२९,१३२ ) पर शायद वह भूल जाते है की मामले की गंभीरता को देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश वी. आर. कृष्णा अय्यर ने उन्हें सशर्त और खण्डशः स्थगन प्रदान किया | २३ जून को दिए अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा की प्रधानमंत्री सदन में तो रह सकती है पर निर्णय होने तक वोट नही दे सकती और ना ही वेतन ले सकती है | इस अपीलीय निर्णय के गहन निहितार्थ थे जैसा की डा. राही मासूम रजा ने लिखा है की जिन मुकद्दमो में राजनीति या विचारधारा या उसूलो की बात आन पड़ी हो उनमे कानून अंधा-बहरा नहीं रह जाता | उसके चेहरे पर आँख उग आती है | नाक बन जाती है | कान निकल आते हैं | विद्वान न्यायधीश को निर्णय देते समय मुकद्दमे की गंभीरता का पूरा एहसास था और इसके परिणामो को वे पूरी तरह समझते थे | उन्हें यह भी पता था की प्रस्तुत वाद में स्थगनादेश , पूर्ण निर्णय से भी अधिक महत्वपूर्ण है | इस विषय में स्व. बिशन टंडन जो तत्कालीन प्र. म. कार्यालय में सचिव थे का प्रेक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है | उनके अनुसार इलाहाबाद के नामी वकील कन्हैया लाल मिश्रा , एड. सतीश खरे , फाली एस. नारीमन , पालकीवाला आदि सभी वकीलों ने यशपाल कपूर वाले मुद्दे पर विशेष चिंता जताई थी और इसे प्रधानमंत्री के प्रतिकूल बताया था | वे लिखते है – ” जिस भी वकील ने इस मुकद्दमे के कागजात देखे सबको लगा की कपूर के त्यागपत्र के मुद्दे पर प्रधानमन्त्री के पक्ष की स्थिति कमजोर थी | इसलिए इस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिये की इस प्रश्न पर जज का निर्णय प्रधानमन्त्री के खिलाफ गया | यह कहना भी उचित नहीं लगता कि जज ने जिस आधार और तर्क पर अपना निर्णय दिया वह ‘लचर’ था |……………………………….जज का निर्णय बिलकुल ठीक था | प्रधानमन्त्री के पैरोकार को अवश्य ही इस बात का एहसास था तभी वे अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए गलत-सही काम करने से भी नहीं हिचक रहे थे | “

      कुछ भी हो उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद से ही पूरा विपक्ष प्रधान मंत्री के त्यागपत्र की मांग करने लगा | विपक्षी नेतागण राष्ट्रपति भवन के सामने धरने पर बैठ गए और राष्ट्रपति से मांग की कि वे प्र.म. को बर्खास्त कर दें | जे. पी. ने कहा की मुद्दा यह नहीं है की कांग्रेस पार्टी क्या चाहती है बल्कि यह है की देश में कानून का राज है या नहीं |दूसरी तरफ प्र.म. आवास पर दूसरा ही नजारा था | श्रीमती गांधी ने त्यागपत्र की मांग को सिरे से नकार दिया | अपनी चिरपरिचित शैली में देश भर के कांग्रेसी सफदरजंग आ-आ कर तथाकथित निष्ठा का प्रदर्शन कर रहे थे | उस समय डी. टी. सी. में १४०० बसे थी जिनमे से १००० कांग्रेसियों को ढ़ोने के काम में लगी थी | न्यायिक अधिकार पर सवाल किये जा रहे थे और न्यायमूर्ति सिन्हा के पुतले फूँके जा रहे थे | हर दिन एक ताजा जत्था वहां पहुंचता और लोकलुभावन हथकंडे अपनाते हुए प्र.म. उन्हें संबोधित करती | २० जून को प्र.म. ने वोट क्लब मैदान में एक विशाल जनसभा बुलाई और खुद को शहीद के रूप में प्रस्तुत किया | जवाब में दो दिन बाद विपक्ष ने भी एक जनसभा आयोजित की |जे. पी. इस रली के प्रमुख वक्ता थे पर एअर इंडिया के जिस विमान से उन्हें आना था वह आखिरी समय में रद्द हो गया | उनके स्थान पर मोरार जी ने सभा को संबोधित किया और करो या मरो का नारा दिया |
      एसी दशा में श्रीमती गांधी के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प यह था कि वे अपने किसी विश्वाशपात्र को सत्ता सौंप देती और वाद के निर्णय होने तक पद पर ना रहती | पर उन्हें किसी पर विश्वास नहीं था | ऐसा माना जाता है कि पुत्र संजय गांधी और मित्र सिद्धार्थ शंकर रे की सलाह पर अनु. ३५२ का प्रयोग करते हुए आतंरिक आपात काल लगाना उन्हें अधिक उचित जान पडा | इसके लिए ना तो मंत्रिमंड़लीय सहमति ली गयी और ना ही विधिमंत्री और गृहमंत्री से इसकी कोई चर्चा की गयी |

        ( क्रमशः )

      Read Comments

        Post a comment

        Leave a Reply