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मैं एक ऐसी दुनिया मे हूँ ,
जहाँ कविता और कहानी का अंतर मिटता जा रहा है ,
जहाँ भावनाएं केवल बयान हो कर रह गयी हैं,
और छन्द केवल पंक्तियाँ बन चुके है ,
जहाँ अभिव्यक्तियां रुखी और नग्न होती जा रही है ,
जहाँ वेदनाओं से अधिक मूल्य व्याख्याओं का है ,
और व्याख्याएं बस तकनीक बन कर रह गयी है ।
मै एक ऐसी दुनिया मे हूँ ,
जहाँ तकनीक प्रकृति से दूर होती जा रही है ,
जहाँ तकनीक भावनाओं की तरह प्राकृतिक नहीं है ,
और कृतिमता महानता का पर्याय बन चुकी है ,
जहा प्रकृति पर्यटन स्थलों का उत्पाद बन चुकी है ,
और बाजार मे उसका मूल्य तय है
जो माँग के अनुसार घटता – बढ़ता है ।
” पर ” – इन सारे उलझावो में ,
जीवन की उल्टी राहो में ,
कुछ बाते अब भी सीधी है ,
कुछ बाते अब भी मीठी है,
इन बातो के मीठेपन से ,
इन राहो के सीधेपन से,
जीवन का अवकाश भरेगा ,
गीत कभी भी नहीं मरा है ,
गीत कभी भी नहीं मरेगा ।
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