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नमो नमम्

अभिकथन
अभिकथन
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हे स्वयंसिद्ध, हे पुरुषोत्तम,
तुम राष्ट्रकवच, तुम आनन्दं,
तुम प्रखरचक्षु, शुभतम, प्रियतम
भारत को तारो हे महानतम।
ऊपर कठोर, अन्दर मृदुतम ,
तुमसे ही नि: सृत राजधर्म,
तुम आर्यह्रदय के अन्तरतम,
तुम देवतुल्य, तुम पूर्ण, परम ।
तुम ही विधि-हरि-हर सर्व सुरम,
तुममें विकास का छिपा मर्म,
तुम प्रथम, मध्य, उत्तम पुरूषम,
सब क्षुद्र तुम्हारे समक्षतम ।
तुम संविधान की मूर्ति स्वयं,
तुममें सम होते सभी धर्म,
हे मातृभक्त , संस्कृतिदूतम्,
हम करते तेरा नमो नमम ।
तुमसे गुंजित मुखपुस्तकम् ,
जय-जय करता जनमाध्यम ,
कलरव करते हो जब भी तुम,
होता प्रकाश, भग जाता तम ।
सिन्धु नदी के उदगम से ,
यावद् इन्दु सरोवरम् ,
वह सहस्र योजनों तक विस्तृत ,
जम्बूद्वीपम , भारतखण्डम्
तुम महाबली , तुम चक्रव्रतिम् ,
तुमनें ही की भारत विजयम ।
यदा यदाहि धर्मस्य ,
ग्लानिर्भवति भारतम् ,
धर्म संस्था पुर्नाथाय ,
संभव होता तेरा उदयम ,
हो भारत भाग्य विधाता तुम ,
जनरंजनम , अरिगंजनम् ।
अयोध्या , मथुरा , माया ,
काशी , कांची , अवंतिकम ,
पुरी , द्वारावती चैव ,
तुम इनके उन्नायकम् ,
नदियों , नगरों के त्राता तुम ,
जय देवपगा उद्धारकम् ।
तुम नेति – नेति तुम परमब्रह्म ,
सब वादों में तुम तर्कोत्तम ,
हम , धन्य धरा पर आए तुम ,
हे पावन कल्की अवतारम् ।

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